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करके तनहा हमें यूँ छोड़ जाते हो
जगप्रीत जगजीत के यूँ छोड़ जाते हो!
भूलते थे हम खुदहीको सुनके आवाज़ आपकी,
लेकिन खुदही भूलाके हमें यूँ छोड़ जाते हो !
महेक उठता हैं जर्हा जर्हा सुनके आपके साज़ को
उसी महेके जर्हा को फीज़ामें छोड़ जाते हो !
अभीतो हंस ही रही थी ग़ज़ल छूके लबोंको आपके
फिरभी उसको करके बेगाना यूँ गममें छोड़ जाते हो !
हम दीवाने हैं दीवाने ही रहेंगे आपके
उन सुनेहेरी यादोंको मनमें छोड़ जाते हो !
-प्रवीण उत्तम राचतवार