वेडं प्रेम

Started by प्रशांत नागरगोजे, January 14, 2013, 07:11:16 PM

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प्रशांत नागरगोजे

(केदारजी जरा सांगा आता जमला का "हाइकु" प्रकार?)

सूर्य निजला
आभाळाची चादर
झोप लागेना

नभी चांदण्या
अनं हसरा चंद्र
मन रमेना

नवच प्रेम
त्यात ही काळीराञ
बेचैन करी

कच्चाच दोर
ती आवेशानं ओढी
तिचीच ओढ

हतबल मी
असहय्य दुरावा
सूर्य उठेना

प्रेमच वेडं
वेड लावी जिवाला
मीच शहाणा

-आशापुञ

केदार मेहेंदळे

प्रशांत
एकदम मस्त लिहिली आहेस.  थोडं माझ्या कडून..... बघ आवडतंय का?

सूर्य निजे ना
तगमग जीवाची
दिन सरे ना

चंद्र निजे ना
एकटाच आकाशी
रात सरे ना

सूर्य एकटा
झुरतो मी एकटा
चंद्र एकटा

दिन सरेना
पाहू गं किती वाट
रात सारे ना

प्रशांत नागरगोजे

dhanyavad kedarji,..awadli tumchi kavita...khar mhanje mala kaviteche prakar asatat he mahit navhat mala...tumhi "haiku" lihayala suruvat keli....mag mihi kaviteche prakar sodhun kadhale...ani haiku prakar lihayala suruvat keli.

amol jathar

Prashant sir,
     
            Avadli bar ka tumchi kavita.....
Me thodIsi lihu ka pude?

Raat hi sarel
Mag me ektach urel
Kadhi ga yeshil tu
Kadhi thambel hi tagmag

Yeshil tu mahit ahe
Me asel ki nasel mahit nahi
Tu ye, asashil tashi ye
Me ahe tuza ni tuzach




मिलिंद कुंभारे

नभी चांदण्या
अनं हसरा चंद्र
मन रमेना

छान कविता आहे :) :) :)


hemant tiger

chaan aahe kavita mi majhya baykola pathavli tilahi aasu aale