तुझ्या वाचून मी राहू कसा?

Started by Tushar Kher, March 12, 2013, 09:16:00 PM

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Tushar Kher

मना वर काबू ठेवू कसा?
तुझ्या वाचून मी राहू कसा?

जगाची बंधने जकड्ति माला
अश्या स्थितीत मी जगू कसा?

रात्र भयाण दिवस एकाकी
दुख दुराव्याचे सहन करू कसा?

तुझे डोळे पाणावलेले असताना
सांग प्रिय मी हसु तरी कसा?

तुषार खेर

केदार मेहेंदळे


मिलिंद कुंभारे


तुझे डोळे पाणावलेले असताना
सांग प्रिये मी हसू तरी कसा?

खूप छान  भाव  आहे!

मिलिंद कुंभारे


मिलिंद कुंभारे

Dear Tusharji,
I would like to share one of my hindi poem.
Pl let me know whether you like it. Be positive and think positive!

ये पागल मनवा!

थमसी गयी हैं जिंदगी!
रुकें  रुकेंसे हैं कदम!
फिरभी न जाने क्यूँ
किसकी राह तकें है;
ये पागल मनवा!

खोया खोया सा हैं चाँद!
रूठी रूठीसी  हैं चांदनी!
फिरभी-----------

बरसों हो गये;
बादल को गरजतें सुना नहीं;
बरखा को बरसतें देखा नहीं!
फिरभी-----------

श्याम अभी ढली नहीं;
सुबह अभी हुई नहीं!
फिरभी-----------

अब कोई किसे कैसे समझाये;
ये तेरे बावरें नैं;
क्यूँ करें हैं इंतजार?
उस ढलती हुई श्याम का;
धुंधलीसी सुबह का;
और ठंडे ठंडे पवन संग
झूमती हुई बहार का!

न जाने क्यूँ
किसकी राह तकें है;
ये पागल मनवा!

मिलिंद कुंभारे



Tushar Kher