------ घन बरसत -------

Started by Ambarish Deshpande, March 20, 2013, 08:36:44 PM

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Ambarish Deshpande

घन बरसत नित तळपत बिजली
मन विचलीत ही तळमळ कसली
शाम-मेघना, शामल सजना
कोमल प्रिती, सूख वेदना
राह तकत, यांदे गहिवरली


सावन जलती आग तनावर
रोखुं कैसे भाव अनावर
ईंद्रधनुवर, चिंब सरीतुन
कैसे जोगन, ढुंढे साजन
गात्र तुझ्या गंधाने सजली..
घन बरसत....


साजन संग ये, जग बिसरावे
मुक्त आसवे, नयनी यावे
संग सुखाचा देह-मनातुन
जगले मीलन, सरसरला क्षण
आग तुझ्या स्पर्शातुन विझली.

घन बरसत नित तळपत बिजली

अंबरीष देशपांडे

केदार मेहेंदळे

kya bat.... tal ani lay shbdan madhunach milate....