प्रेम कविता

Started by kumudini, April 25, 2013, 02:49:38 PM

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kumudini

     दवबिंदू

थेंब  दवाचा

करी  गुदगुल्या 

नाजूक  कालीकाला 

मोहरल्या  त्या 

अंगी   शहारल्या

अन  अवचित 

फुलून  आल्या 

अरुण  उगवला 

थेंब  गळला

फुललेल्या  त्या 

सुकुनी  गेल्या 

करी  प्रतीक्षा 

पुन्हा  उद्याची 

अपूर्णतेचा  असे

शापच  का   प्रीतीला

कुमुदिनी  काळीकर     

मिलिंद कुंभारे

छान कविता आहे!  :) :) :)