ॠण जन्मदेचे

Started by kumudini, April 30, 2013, 02:39:27 PM

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kumudini

     

आई  म्हणजे   आईच   असते

दुसर  तिसर   काहीच   नसते

तिच्या   मारत हि   मायाच   असते

तिच्या   मिठीत  संरक्षण   असते

लेकराची  ती   ढालच  असते   

सर्व  घाव   वरचेवर   झेलते

घास  जरी     कोरडा   असला

तरी  त्यात  अमृत   असते

दुर्गुणाला  सद्गुण  बनविते

कारण  तिचे  ते सामर्थ्य  असते

रस्त्यावरचे   काटे  अलगद   उचलते 

लेकराचा   मार्ग  निष्कंटक   करते 


अंगाईत  तिच्या  गंधर्वाचे  सूर  असते

मांडीवर  तिच्या   इंद्रपद  असते

अशी  आई  काय बोलावे  शब्द  नसते

म्हणून  ती शब्दातीत  असते

आई  ही  आद्य गुरु  असते

म्हणून ती  वर्णनातीत  असते

म्हणून म्हणती  भले

ॠण  न  जन्मदेचे  फिटे 

                                                    कुमुदिनी  काळीकर