स्थितप्रद्न्य

Started by kumudini, May 01, 2013, 03:50:08 PM

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kumudini

     

स्थितप्रद्न्य  हा  उभा  ठाकला 

द्याया  छाया  विश्वाला

भला  बुरा  तो  न  जाणतो

एकच  छाया  सकला  देतो

संथ  वाहते  शीतल  सरिता 

भेदाभेदा  नच मानीता

तृष्णा   शामविते   तृषार्त  येता

पालन  करूनी  निजधर्माला

निसर्ग  पाळी  स्वधर्म  आपुला

मानव  सगळे  विसरून  गेला

जाग  माणसा   जाग  आतातरी

स्वधर्मास   तू पाळायला

                                             कुमुदिनी काळीकर

केदार मेहेंदळे



मिलिंद कुंभारे

निसर्ग  पाळी  स्वधर्म  आपुला

मानव  सगळे  विसरून  गेला

छान !!!!!