साद प्रतिसाद

Started by kumudini, May 07, 2013, 03:43:41 PM

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kumudini

 
कुहु  कुहु  करुनी  कोकीळ  घाली  साद  वसंताला 

प्रसन्न  वदने   तोही  आला  भेटाया  तिजला

गर्द  पाचूचा  शालू  हिरवा  सजवी  वासुधेला 

रजनीने ही  चमचमणारा  शेला  पांघरला

पान  गळी चा  सडा  सभोती  पडतो  दृष्टीला

पालवी  कोमल  सजवीत  आहे  लतिका  कुन्जाला

कळ्या  कोवळ्या  जाई  जुईच्या  अन्कावर  फुलल्या

दिशा  दिशातून  शुभ्र  मोगरा  पसरवी  गंधाला

आम्र  वृक्षीच्या  तख्ता  वरती  फळ राजा  शोभला 

करिती  मुजरा  मानाचा  हो  जाता  येता  त्याला

परमेश्वर  हि  सृष्टीच्या  या  रूपावर  भुलला

अमृत  कुंभाचा  नजराणा  बहाल तिजसी केला

वसुंधरेचे  रूप  मनोरम  वसंतात  खुलते

नव  चैतन्याचा  संदेशाला  देते

नवीन  वर्ष  हे  म्हणूनी  करू  या  अभिवादन  सकला

सौख्य  शांती  ही  जीवनी  लाभो  प्रार्थू  ईशाला 

                                         कुमुदिनी  काळीकर

केदार मेहेंदळे


मिलिंद कुंभारे

छान कविता आहे!