राधेय

Started by kumudini, May 15, 2013, 03:24:29 PM

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kumudini

 
कर्णा  समान  दाता  विश्वात  नाही  झाला

अन्तीही  दान  केले  त्या  कवच  कुंडला ला

तरीही  मनी सदैव  याचक  राहियेला

आई  विना  भिकारी  सिद्धांत  जीवनाला

अवहेलना  जगाची  मनी  नित्य  साहताना

असुनीही  अद्वितीय  सामान्य  तोच  ठरला

कृतकर्म  भोगतो  का   काहीच  आकळेना

जाळीत  नित्य  होता  आक्रोश  हा  मनाला

असतो कुपुत्र  जगती  नसते  कधी  कुमाता 

सिद्धांत  हाच  उलटा  राधेय  जीवनाचा

तरीही  जगात  तोच  का  निंदनीय  ठरला

मंजूर  हेच  होते  का  विश्व  देवतेला

सुडाग्नी  हृदयी  त्याच्या  नियतीच  पेटवूनी 

का  खेळ  खेळली  ही  अगतिक  हा  म्हणूनी

आयुष्य  पार  त्याचे उधळूनी या  निघाले

अंती  क्षणात  तो  ही  जगी  नामशेष  झाला     

                                                            कुमुदिनी  काळीकर

मिलिंद कुंभारे


rudra

kamudini.....karna ha mazha sarvat avadta yoddha.....
sundar likhan.....


Mastach kumudini
Karna hee mazi khup awadti personality ahe
tyavar eavdhi bhari kavita nahi pahili

sweetsunita66

मस्त !!!! अप्रतिम ... छान वाचन आहे .  :) :)