भूपाळी श्रीकृष्णाची

Started by kumudini, May 16, 2013, 03:17:51 PM

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kumudini

उठ रे सावळ्या

जागरे  तान्हुल्या 

जागवाया  तुला

प्राची  तेजाळली 

येऊनी  अंगणी 

थांबले  सवंगडी

ऊठ   गा  श्रीहरी

बोलली   माउली

धेनू   हम्बारल्या 

साद   घाली  तुला   

ऊठ   गा   सावळ्या

आता   सत्वरी

सूर्य   आला  नभी

तेज   पुंजाळूनी

साद  घाली   तुला

पावनही   गाउनी

करुनिया   मंथना

काढूनी   नवनीता

भरविण्या  तुला

थांबले  मी  उभी 

कुरवाळुनी   मुखा 

घेतसे  चुंबना

हासुनी  गाली  तो

जागला  श्रीहरी

                          कुमुदिनी   काळीकर

विक्रांत

वा फारच छान ,मन प्रसन्न झाले.