वृक्ष

Started by kumudini, June 07, 2013, 07:16:38 PM

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kumudini

  वृक्ष

गरुड  भरारी  मला  नावडे घेणे  अंबरी

आहे  मजला  बहुतच  माझी  अवनी  प्यारी

घट्ट  रोवूनी  उभा  असे  मी माझ्या  पायावरी

नकोच  मजला  फिरणे अंतरी  आधांतरी

चमचमणारी  फुले  उमलती  नित्यच  आभाळी

हृदयामाजी  आहे  माझ्या  नाजूक  जाई  जुई

         

लखलाभ  असू  दे  तुज  गंगा  आभाळीची

तृषा  भागवी येथे  माझी गंगा  भागीरथी 

अंबरा  तुज  सौंदर्याचे  वरदान  जरी

हि  काळी  धरती  मज  प्राणाहून  प्यारी

                                                                 कुमुदिनी  काळी  कर

rudra


kumudini

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Kumudini Kalikar :) ;) :)

केदार मेहेंदळे


कवि - विजय सुर्यवंशी.

छान शैली आहे कवितेची.....

मिलिंद कुंभारे

लखलाभ  असू  दे  तुज  गंगा  आभाळीची
तृषा  भागवी येथे  माझी गंगा  भागीरथी
अंबरा  तुज  सौंदर्याचे  वरदान  जरी
हि  काळी  धरती  मज  प्राणाहून  प्यारी .......

छान.... :)

vijaya kelkar

 :) :)
सुंदर ......


sweetsunita66

मस्त  कविता आहे ...... सुनिता  :)