शरद पौर्णिमा

Started by kumudini, September 10, 2013, 04:57:30 PM

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kumudini

                                               

शरद  पुनव अंबरात
पूर्ण बिंब  तेजाळत
निळ्या  निळ्या  नभात
चमचम  चांदणे  फुलत
जोत्स्नेच्या  रजत  झोती
अवनी  ही  सुस्नात  होत
चंद्र  तेज  न्याहाळत
कासारी  कुमुदिनी  फुलत
पाहूनी  शशी  नभात
सागरही  उचंबळत
वेलीवर  फुलत  कळ्या
अधीर  चंद्र  पाहण्यास
ही  अशी  शरद  रात
न  जाय  विस्मृतीत
                        कुमुदिनी  काळीकर