मंदिर की बाजार

Started by kumudini, November 05, 2013, 11:26:13 AM

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kumudini

                                    मंदिर  की  बाजार

आरोग्य  मंदिरी  दाटी  करती  पुजारी

घेती  शपथ  देवाचिये  पायी

येतील  भक्त  कोणी  करू  सेवा

नीरपेक्ष  निरलसपरी


नव्याचे  नऊ  दिन

जाती  उडून  भुरकन

सर्वांशी   गोड  बोलून

यथाकाल  जाई  निघून

घेती  पाशी  अडकवून

भक्त  भोळे  भाबडे

त्याच्यावर  विसंबले

सांगे  करी  त्यापरे

पाश  पुरा  आवळला

पुजाऱ्याने  कावा  साधला

म्हणे  पैसे  ठेव  ना  चाल  तर

करुनी  गयावया

पडला  हातापाया

पण  दगड  कधी  का  विरघळला

भक्त  कफल्लक  झाला

पुजारी  धनवंत  झाला

महाग  होता  सायकलीला

लागला  मोटार  उडवायला

हे  नव्हेत  पुजारी

हे  बडवे  बाजरी

तुका  म्हणे  त्यापरी

त्यांना  पुजावे  कशासाठी

                                                  कुमुदिनी  काळीकर