ग प्प बसता का , पाङू दात

Started by कवि । डी....., February 27, 2014, 02:14:35 PM

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कवि । डी.....

रात्र  रात्र  पार्टीला  जाण
पिऊन  उशीरा  घरी  येणं
हे  बंद  सगळं  झालं  पाहिजे
सहाच्या  आत  घरात  पाहिजे


मी  म्हणालो   जमणार  नाही
अन्याय  सहन  करणार  नाही


त्यावर   ती  म्हणाली  रागात
गप्प   बसता  का , पाङू  दात
तुमची   मेली  पुरूषांची   जात
नाही   ऐकलं  तर   काढीन  वरात

भीतीनं  मी  झालो  गार
मनाशीच  सांगत होतो
नाही   आज  आपला  वार  .......
नाही   आज   आपला  वार................


                    ।कवि-डी।
                  स्वलिखीत
                 दि. 27. 02 .2014
               वेळ। . :  दुपारी  02: 15