विरहिणी झुरते

Started by nishikantshrotri, March 18, 2014, 12:42:43 PM

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nishikantshrotri

पेंगुळलेल्या रात्री या का समया तेजावल्या
विरहिणी झुरते इथे एकली कलिका पाणावल्या ||धृ||

लाटेवरूनी फेस येतसे अंगांगा भिजवाया
लहरींवरुनी गंध विहरतो गात्रांना फुलवाया
मनिच्या उर्मी विरसुनी गेल्या तुझिया स्पर्शाविना
विरहिणी झुरते इथे एकली कलिका पाणावल्या
                                  आज का कलिका पाणावल्या?||१||

भ्रमारस्पर्शा कलिका येथे कितीक आसूसल्या
पौर्णिमेच्या रात्री या चन्द्राविण कोमेजल्या
फुलती स्वप्ने सुकून गेली विरुनी जायाला
विरहिणी झुरते इथे एकली कलिका पाणावल्या
                                  आज का कलिका पाणावल्या?||२||

चक्रवाकही आर्त जाहला चोची या सुकलेल्या
शुष्क सरिता फाटून गेली सागर दुरावला
जीवन आशा एक राहिली अखेर गाठायला
विरहिणी झुरते इथे एकली कलिका पाणावल्या
                                  आज का कलिका पाणावल्या?||३||

निशिकांत श्रोत्री रचित
शब्दांची वादळे या काव्यसंग्रहातून