तु हुंदके देऊन जेंव्हा आज रडत होतीस........

Started by कवि । डी....., April 02, 2014, 11:14:08 PM

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कवि । डी.....

तु  हुंदके  देऊन  जेंव्हा
आज  रडत  होतीस

तु  मला  गं  खरचं
रडवीत  होतीस

प्रत्येक  हुंदक्यागणिस
छाती  तुझी  धडकत  होती

तुझा  एक एक  हुंदका
डोळ्यातुन  पाणी  काढीत  होता

ओरङुन  तुझा  आज
घसा ही  बसला  होता

धार  डोळ्याची   तुझ्या
थांबता  थांबत  नव्हती

बिनपावसाचा  आज
महापूर  आला  होता

भिजले  होते  कपडे
डोळे  ही  झाले  लाल

शेंबूड  नाकातुन
गळत  होता

डोळ्याला  डोळा
जुळत   नव्हता..........


               । कवि-डी ।
                 स्वलिखीत
                  दि. 02 .04.14
                  वेळ. रात्री . 11.12