!! दिंडी !!

Started by शिवाजी सांगळे, June 20, 2014, 01:25:10 PM

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शिवाजी सांगळे

!! दिंडी !!

हाती पताका भगवी
कपाळी अबिर, गळा तुळसी माला,
भक्त दर्शनाचा भुकेला                     
विसरूनि भान, पंढरी चालला।।       

जडले मन भगवंता
राहीले ना भान संसाराचे,
ऐसा महिमा विठूचा               
केवळ ध्यान, आता सावळयाचे।।       
 
चाले भक्ततांडा अखंड
झेलूनिया उन, पाऊस वारा,                   
विसरतो कष्ट वारकरी
दर्शने मात्र, विठ्ठल गोजीरा।।     

टाळमृदंग, नामाचा गजर
माऊली, तुकयाची अविट ओवी,
जाणाया भक्तांची मांदियाळी
एक तरी दिंडी अनुभवावी।।


© शिवाजी सांगळे
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