सैल ह्या मनाच्या गाठी

Started by deepeshkale, August 19, 2014, 09:01:38 PM

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deepeshkale

सैल ह्या मनाच्या गाठी तरीही  गुंता  हा  सुटत  नाही.
शांत  शांत असतो तरी , वादळ  हे थंड  होत  नाही.

बंध असे  हे  बांधून  ठेवतात , कि  काही  केले  तरी  तुटत  नाही.
प्रत्येक  क्षणी आहेस  तू  आठवणीत , काही केल्या पुसत नाही. 
                                                   
दूर गेलो क्षितिजा पल्ल्याड , पण  तू  सुटत  नाही.
बेभान  होतो  तुझ्यात  इतका , कि  अजून  काही  सुचत  नाही.
                                                 
आभाळ  हे  ढगांनी भरल , पण  आभास  तुझा  विझत  नाही.
आटल्या  नद्या ह्या अशा ,  कि  पाझर आता  फुटणार  नाही.

दाटून  आला  उर  , आता  स्वर ओठातून  फुटत  नाही.     
कान  हे आतुरले  तुझ्या  शब्दांसाठी , पण  साद  तुझा  ऐकू  येत  नाही .

एकटा  असा  हा गर्दीत मी , विरह  हा सहन  होत  नाही.
ओलावल्या  ह्या  पापण्या , आता अश्रू  गालावरुनी ओघळत नाही.
                                                 
सैल   ह्या मनाच्या गाठी तरीही गुंता हा सुटत नाही.

स्वलिखीत .

दीपेश काळे .
गोवा.
+९१-९४०४७५८५७८                                  .