* तुझ्याविना *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, September 29, 2014, 07:06:07 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

* तुझ्याविना *
तुझ्याविना मन लागेना
काही केल्या रमेना
सावरु म्हटले सावरेना
आवरु तर आवरेना
            तुझ्याविना...।। 1।।
ह्रदयात तुच तु
श्वासात वाहते तु
स्वप्नात येतेस तु
तरी डोळ्यांना दिसेना
             तुझ्याविना।। 2।।
मृगजळ झाले जीवन
उरली फक्त आठवण
त्यात तुझी साठवण
मिटवु म्हटले मिटेना
              तुझ्याविना।। 3।।
चार भिंतीत कोंडुन
रोजच स्वताशी भांडुन
कहानी तुझी लिहुन
जाळतो तरी जळेना
              तुझ्याविना।। 4।।
श्रावण आलेला नभातुन
पुन्हा आग लावुन
गेला तो निघुन
तरी अश्रुं थांबेना
              तुझ्याविना।। 5।।
कवी-गणेश साळुंखे...!
Mob -7710908264
Mumbai.