ईश्क की ऊस अदालत मे कुछ ऐसीही वकालत थी.....

Started by Shraddha R. Chandangir, November 16, 2014, 10:46:02 PM

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Shraddha R. Chandangir

अंधेरो से राबता और उजालो से शिकायत थी
मेरी ईस तनहाई की यही एक रीवायत थी।

आझाद कीसी परींदे को कैद करलीया धोखे से
वाह रे ईनसान, तेरी भी क्या बगावत थी।

फरीश्तो की लीबास मे कुछ दरींदे थे अपने
तकदीर मेरी इतनीही, ये खुदा की इजाजत थी।

जब वक्त मेरा होगा तो लोग भी मेरे होंगे
कंबख्त ऊस वक्त की, यसी एक नजाकत थी।

बेवफा हो तो बेकसूर, वफा करनेवाला गुनहगार
ईश्क की ऊस अदालत मे, कुछ ऐसीही वकालत थी।

- अनामिका
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