"मंजिल-ए-सही" (हिंदी)

Started by nitinkumar, February 20, 2015, 02:59:49 PM

Previous topic - Next topic

nitinkumar

"मंजिल-ए-सही"

गम है इस बात का हमें
के ये दिल समझता ही नहीं।
जहाँ किया तूने था मना
गुजर बैठा में वहीं।

ये दिल तू बता दे
अपने इरादे यहीं।
जो में समझ बैठा
वो समझता ही नहीं।

चलते चलते उसी राह पर
जहाँ गुजरने का हौसला था ही नहीं।

सोचते थे की फिर वहीं
मौसम न आ जाये कहीं।
आ न जाये वो बादल
जो बदलते हैं पर बरसातें नहीं।

फिर भी उसकी सुर्ख गलियों से
गुजरी सौ राते यहीं।

अब दो कर ले
जो न किये थे बयाँ
कभी वो बातें रहीं।
जानने दे उसको
वो बातों का कारवाँ

और चुने है तूने जो
मंजिल-ए-सही।
और चुने है तूने जो
मंजिल-ए-सही।


- नितीनकुमार