रात

Started by शिवाजी सांगळे, February 22, 2015, 03:38:46 PM

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शिवाजी सांगळे

रात

हल्केसे रात ने   
कल मुझे जगाया,
अपना दर्द
चुपके सेे बताया !

सन्नाटा गिर्द
खामोशसा रहता है,
दूर से कहीं
चंद्रमाभी झांकता है !

जागती हूँ मैं
आंसु लिए बाहोमे,
कईयों के दर्द
छपायें हुये आहोंमें !

©शिवाजी सांगळे
©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
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