मुंबई बेचारी

Started by शिवाजी सांगळे, June 20, 2015, 07:43:02 AM

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शिवाजी सांगळे

मुंबई बेचारी

बढायी सीमायें मैने
जानके समस्या सारी,
रही समेटती सभीको
गुमसुम मुंबई मेरी।

हमतुम ही कारण
डुबाने मुंबई पुरी,
फेका कचरा,प्लास्टीक
सहेती मुंबई बेचारी।

थमायी बारीश ने
चलती जींदगी तेरी,
दिनरैन जागने वाली
वाह रे मुंबई मेरी।

© शिवाजी सांगळे
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