* बारीश *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, July 29, 2015, 07:37:35 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

भीगे हम कुछ इस तरह
के बारीश भी रुक गयी
हमारे आँसू देखकर वो पगली
मानो बरसना ही भुल गयी.
कवी-गणेश साळुंखे.
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