* फर्क *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, August 23, 2015, 11:13:22 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

तेरी मेरी मौहब्बतमें सनम
है फर्क सिर्फ इतना
तु समंदरका खारा पाणी
तो में एक बहता झरणा.
कवी-गणेश साळुंखे.
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