* तेरे शहर में *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, September 25, 2015, 01:51:16 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

हैं ख्वाब कइ इन आँखोंमें
फिर भी है मुस्कान गालोंमें
कुछ करके जरुर दिखायेंगे हम
यूँही नहीं चले आए तेरे शहर में.
कवी - गणेश साळुंखे.
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