* फुल और पत्थर *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, September 27, 2015, 11:10:44 AM

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कवी-गणेश साळुंखे

कभी हम भी फुलोंकी
तरह हुआ करते थे
लोग आते जाते रहे
हमारी खुशबु चुराते रहे
और मन भर जानेपर
पैरोतले रौंद दिये जाते थे
                   लेकिन अब
हम पत्थर बने बैठे हैं
तो लोग हमसे डरते हैं
अपनी किंमती चीजों को
हमसे संभालकर रखते हैं
कभी-कभार तो मुर्ख-अग्यानी
हमेंही भगवान समझकर पूजते हैं.
कवी - गणेश साळुंखे.
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