उफ़! अब मैं सोऊ भी कैसे

Started by sameer3971, October 10, 2015, 11:57:11 AM

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sameer3971

कटती नही है राते,
उफ़! अब मैं सोऊ भी कैसे
क़रवट बदलते बदलते
ये रैना बिताओ मैं कैसे

कही से वो आए
गले से लगाए
इन्न सर्द रातों मे
मुझे छेड़ जाए.
खिलती नही है अब
लब्बों की पंखुड़ी
कटती नही है राते
उफ़! अब मैं सोऊ भी कैसे


अब उन्ही का इंतेजार
आँखों मे बसा है
घनी बदरी भी अब

बरसाने लगी है.
बूँदों मे खुदको
अकेले भिगाऊ मैं कैसे
कटती नही है राते
उफ़! अब मैं सोऊ भी कैसे

कली खिलाने को तरसने लगी है
महेक से ही अपने भिखरने लगी है
उसे कोई कहे दे हवाओ सा जाके
तेरे इश्क़ की ये खुमारी चढ़ि है
आहों से मचलती ये गर्म
साँसे संभालू मैं कैसे
कटती नही है राते
उफ़! अब मैं सोऊ भी कैसे

समीर बापट
मालाड, मुंबई.
10th October 2015.