आंसू

Started by Dhara, October 23, 2015, 09:23:47 PM

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Dhara

एक कांच को चाह थी पत्थर को पाने की,
उसके प्यार में टुंटकर बिखर जाने की,
मगर आया ऐसा मुकाम.. तकदीर ही बदल गयी दिवानों की,
इसमें खता थी ना उनकी ना ही जमाने की,
पत्थर ने ना दिखाई मोहब्बत ना कभी वफा की,
बीखर गयी कांच.. यांदे जल गयी हसीन मंजोरो  की,
कांच को आदत सी हो गयी थी अब.. एक बारीश में अक्सर भीग जाने की,
मगर वो ना थी कोई बरसात... पत्थर की आंखो  से आंसू निकले थे शायद!