ओंजळीत चंद्रमा ही कोजागिरी पौर्णिमा

Started by sachinikam, October 26, 2015, 10:03:13 AM

Previous topic - Next topic

sachinikam


------------------------------------------------------------------
ओंजळीत चंद्रमा ही कोजागिरी पौर्णिमा
------------------------------------------------------------------
ओंजळीत चंद्रमा न्याहाळू किती प्रियतमा
उमटली क्षीरसागरी पूर्ण चंद्राची प्रतिमा
तुषार पीयुषांचे उधळले धरणीवर
रंगरूप नवेनवे आला सृष्टीला बहर
पाहिला मी अवर्णणीय महिमा
बंध प्रीतीचे जुळवाया आली कोजागिरी पौर्णिमा


ओंजळीत चंद्रमा न्याहाळू किती प्रियतमा
चंदनाहून शीतल सुमानांहून कोमल
सुरूप तुझे मनात भरले जागवून निराळी हलचल
झुळूक गार सुटली हिमवृष्टीच जणू भासली
जाहला अपूर्व करिष्मा
बंध प्रीतीचे जुळवाया आली कोजागिरी पौर्णिमा


ओंजळीत चंद्रमा न्याहाळू किती प्रियतमा
निशीगंध दरवळला घेउनि सुगंध प्रीतीचा
तळहातावरचा अजून रंगला ओला रंग मेंदीचा
दुग्धशर्करा योग आजचा नि नभी चंद्रमा
राजहंस युगुल मिळूनी साजरी कोजागिरी पौर्णिमा.
------------------------------------------------------------------
कवी : सचिन निकम
कवितासंग्रह : मुग्धमन
संपर्क : ९८९००१६८२५, sachinikam@gmail.com, पुणे


https://www.facebook.com/109963899088997/photos/pb.109963899088997.-2207520000.1445833178./109964925755561/?type=3&theater

https://youtu.be/orc3y8480yA?list=FLo4Y8zK-pEBaLtgzoYNrAcA - चंद्रमा नभी आणि ती जवळ उभी