* मुझ जैसा *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, November 01, 2015, 11:10:59 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

इतना ना इतरारी तु
तुझ जैसी तो कइ है
मुझ जैसा तो बस
आज और यही है.
कवी - गणेश साळुंखे.
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