==* जैसी करणी वैसी भरणी *==

Started by SHASHIKANT SHANDILE, December 05, 2015, 12:08:30 PM

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SHASHIKANT SHANDILE

कुदरत कि ये कैसी इंतहा है
दुनिया धीरे धीरे मिट रही है
बेकसूर चेहरो कि बेबसी कैसी
मेरा गुनाह धरती भुगत रही है

बडो कि थी शुरुवात यकिनन
मै खुनी हात रंगाता चला गया
आखिर मेरी किस्मत का लिख्खा
अंजाने दुनिया मिटाते चला गया

डूबने लगा मेरे खुशियो का घर
क्या छोटे बडे क्या नर नारी है
अफसोस तो होता है अब मगर
मैने हि कुदरत को सताया है

देख नजारा नम होती है आंखे
पाणी पाणीसी जिंदगी हो रही है
क्या सोच कि थी बरबादी मैने
मेरी कश्ती सागर मे खो रही है
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शशिकांत शांडीले (SD), नागपूर
भ्रमणध्वनी – ९९७५९९५४५०
दि. ०४/१२/२०१५
Its Just My Word's

शब्द माझे!