* जिंदा *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, December 23, 2015, 03:45:09 PM

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कवी-गणेश साळुंखे

हम तो हर बार
मर जाते हैं उन्हें देखकर
पर वो जिंदा कर देती है
कमबख्त हमें फिरसे छूकर.
कवी - गणेश साळुंखे.
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