शाम

Started by dhanaji, January 28, 2016, 07:00:15 PM

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dhanaji


शाम गुज़रती है जब इस इलाक़े से
स्लेट की तिरछी छतों पर चमकते हैं
सुर्ख़ मकई के दाने
और वो नीचे पुल पर
बकरियों वाला है ना
रोज़ यही धुन बजाया करता है बाँसुरी पर!
सिखर दोपहर से जलते साये
थककर
पाँव पसार लेते हैं, पेड़ों तले, मुँह ढांपे
मैं इस बालकनी में आकर बैठ जाती हूँ
और सुना करती हूँ
अपने अंदर की एक ख़ामोशी
कोई भी गुज़रता नहीं है इस तरफ़
तुम कैसे मिल गए थे मुझे यहाँ पहले?
बहुत पहले
- दीप्ति नवल (लम्हा-लम्हा से)