लागले वेध

Started by sachinikam, February 01, 2016, 04:48:01 PM

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sachinikam

लागले वेध

लागले वेध आता, तुला पुन्हा भेटण्याचे
उमगले सर्वार्थ नव्याने जीवन जगण्याचे

नव्हतीस जोवर तू माझ्या आयुष्यात
दाटली होती उदासीनता माझ्या काळजात

तू आलीस, आलीस तू, घेउनि चैतन्य संजीवनी
विस्मरलो, हरवलो, पाहता तुझ्या लोचनी

न कळले, न वळले, दिसले न अन्य काही
खिळली नजर तुझ्यावर, सुखनयने धन्य पाही

स्फुरल्या मला तेव्हा रेशमी काव्यपंक्ती
स्मरल्या पहाटे जेव्हा तुझ्याच स्वपनसंगती

लागले वेध आता, तुला पुन्हा भेटण्याचे
उमगले सर्वार्थ नव्याने जीवन जगण्याचे
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कवी : सचिन निकम
कवितासंग्रह: मुकुलगंध
९८९००१६८२५
sachinikam@gmail.com
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लागले वेध आता, तुला पुन्हा भेटण्याचे
उमगले सर्वार्थ नव्याने जीवन जगण्याचे