उपकार

Started by ajeetsrivastav, February 10, 2016, 09:38:54 PM

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ajeetsrivastav

आज सत्य होता है झूठ
और न्याय को भे मिलती है मात
कलुष की होती है सिद्धि
सत्य को ही मिलती है घात
सबको देता छाया सीतल
फिर जलता क्यू है वही  पात
रात्रि को देता है दृष्टि
बुझता दीपक है वह प्रभात
महलो वालो का क्या जाता
छप्पर तोड़ती है बरसात
भवन तो रहते जस के तस
कुटी बहाती जल प्रपात
मुट्ठी भर धरती के खातिर
होता रहता है रक्तपात
मनोरंजन आखेट है क्यू
मानव करता है जीवघात
जो स्वेद बहाता है किसान
उजड़ा है उसका घर दिहात
क्या यही सत्य है जीवन का
कीचड में रहता है जलजात
बदलो इन पंकिल नियमो को
जग पालन हारी विस्वनाथ
इसी प्राथना को लेकर
आज उठे है मेरे हाथ ।।
बच्चा अबोध है जो अब तक
मर जाते क्यू उनके भी तात
क्या पाप कभी करता है वो
हो जाता है फिर क्यूँ अनाथ
बच्चे मरते फिर ठंढक से
स्वानों को मिल जाते है नाथ
उनको कब मिलता है कोई
जिन्हें चाहिए सच में साथ
तरुणाई करती है अविनय
जब मेहनत करती वृद्ध गात
जीवन भर फल देता जो तरु
क्यू उन्हें गिराती तेज़ वात
आज जगत में होता क्यू
इतना ही ज्यादा पक्षपात
मानव करता मानव से भेद
सदा पूछता क्या है जात
तू तो समदर्शी  ही है
क्या तुझे नहीं है फिर ये ज्ञात
कहा छुपे हो हे ईश्वर
इनपर भी कर दो दृष्टीपात
सबकी सुनते हो कहते सब
मेरी भी सुन लो यही बात
करता हु मै तुमको अर्पित
अपना यह सबकुछ यह और गात
बस चाहू मै इसके बदले
दे दो फिर से निर्बल का साथ
कर दो इनपर उपकार प्रभु
जग पालन हारी विस्वनाथ
इसी प्राथना को लेकर
आज उठे है मेरे हाथ ।।