चाह कर भी चुप चाप हूं

Started by janki.das, February 17, 2016, 11:24:56 AM

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janki.das


चाह कर भी चुप चाप हूं
कुछ कहने की चाहत है
पर खामोश हूं
बातें करता हूं इस दिल से
कोई साथ नही
इसलिए अपने साथ हूं
सहारा तो नही ढूनडता
पर सहारे की चाह है
तन्हाई से दोस्ती हो गयी
और अपने आप से भी
पर कभी कभी
रोशनी की तलाश है
सोचता हूं एक दिन
मंज़िलो की आस में
मिलूँगा उनसे भी कभी
इस ख्वाब के साथ
चल पड़ा हूं आज फिर
रात काटने की बात है
फिर वही सवेरा
और फिर वही रात है ...
फिर वही सवेरा
और फिर वही रात है ....


-- unknown