==* रुकना चाहता हु *== (गजल)

Started by SHASHIKANT SHANDILE, March 22, 2016, 01:55:09 PM

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SHASHIKANT SHANDILE

रोकले कोई अगर तो रुकना चाहता हु
दिखे खुदा अगर तो झुकना चाहता हु

ख़त्म हुए महफ़िल जमाना गुजर गया
उनकी आग़ोश में फिर उड़ना चाहता हु

बुझ गई शम्मा और अंधेरा छा गया
जले दिया अगर तो बुझना चाहता हु

गहरा चुभा है खंजर बेवफाई का दिलमें
मिले अगर रास्ता तो मुड़ना चाहता हु

तनहा नहीं "शशि" जो जी नहीं सकता
मिले साँस अगर तो उठना चाहता हु
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शशिकांत शांडिले, नागपुर
भ्र. ९९७५९९५४५०
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शब्द माझे!