* बेजान *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, June 03, 2016, 11:13:39 AM

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कवी-गणेश साळुंखे

जानकर भी सब अंजान बने रहे
जान कहलानेवाले जान लेते रहे
करते भी क्या हम और इससे ज्यादा
बस धडकते दिलको बेजान करते रहे.
कवी - गणेश साळुंखे.
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