अग्नी स्पर्श

Started by विक्रांत, September 08, 2016, 12:31:47 AM

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विक्रांत




कुठवर वाहू
जीवन ओझे 
मजला लाजे 
मन माझे  ||

जरी नालायक
तुझिया प्रेमास   
का रे जीवनास
स्वप्न दिले  ||

भक्तीभावना   
मज ना कळते   
चित्त न रमते 
ग्रंथांतरी   ||

बैचैन अंतर   
स्मरे रातदिन 
दत्त दयाघन
कृपा करी   ||

ये रे  लवकरी 
ने रे झडकरी
देवून कर्पुरी   
अग्नी स्पर्श  ||   

डॉ विक्रांत प्रभाकर तिकोणे
http://kavitesathikavita.blogspot.in/