गझल

Started by Ravi kamble, September 09, 2016, 01:31:56 PM

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Ravi kamble

आग होती व्यक्त झाली काळजाची,,
           वेदना ही माय माझ्या लेखनाची..!

स्वागताला भीत नाही संकटांनो,,
          एवढी केली तयारी मी मनाची....!

मनगटाला एवढा ह्या जोर आहे,,
          बांधते राखी बहीनच दुष्मनाची..!

मी पणाचा रोग इतका वाढला की,,
          ढाल मी घेवून आहे संयमाची....!

वागताना नम्र व्हावे एवढे की,,
       झोप उडली पाहिजे त्या निंदकाची!

मी सुखाचा मार्ग  माझा शोधताना,,
        भेटले मज तत्व सारी गौतमाची..!

रवींद्र कांबळे पुणे 9112143360
      व्हाट्सप क्रमांक . 9970291212