कविता II जहाँ जहाँ बुने थे सपने II

Started by siddheshwar vilas patankar, October 14, 2016, 12:32:36 PM

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siddheshwar vilas patankar


जहाँ जहाँ बुने थे सपने

हम दोनोनें मिलके अपने

ऊस जगह को खरीद लिया

अब इंतजार है तो बस

आखरी सासतक शीशमहल बना दु 

ताजमहल बना देता गर तू और कि ना होती

शिशें कि तरह तोड दिया दिल जालीम

गैरोने सपने खरीद लिये


सिद्धेश्वर विलास पाटणकर C
सिद्धेश्वर विलास पाटणकर C