* जिद *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, October 29, 2016, 10:37:45 AM

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कवी-गणेश साळुंखे


बात अगर जिद की है
तो हम भी बडे जिद्दी है
तु आजमाले हमको बारबार
फिरभी ना मानूंगा में हार

तु बरसा चाहे गमोके बादल
उसमें भी मे भीग जाऊंगा
पर है कसम तेरी मुझे
आँखसे एक आँसू भी ना बहाऊँगा

गुजरे भी जो तेरी गलियोंसे
तो तुझे कभी आवाज ना दूँगा
पर अपने कदमों की आहट
तेरे आँगन में ही छोड जाऊँगा

हो जाए गर आमना-सामना कभी
तो भी तुझसे आँख ना मिलाऊँगा
पर महक अपनी खूशबू की तरह
चारों ओर छिड़ककर जाऊँगा

माना मोहब्बत जरूर की है तुझसे
पर उसकी भीख नही माँगुगा
खुद चलकर आएगी तो
जिंदगी तेरे नाम कर दूँगा

जिदपर ही अडी रही तो
में भी जिदवाला बना रहूँगा
जिद छोडकर आएगी तो
तुझको ही अपनी जिद बना लूँगा.
कवी - गणेश साळुंखे.
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