ढुंढती रही आँखे

Started by शिवाजी सांगळे, November 13, 2016, 12:27:46 PM

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शिवाजी सांगळे

ढुंढती रही आँखे

रातभर जागती रही आँखे
भिगी नम पलके लिए हुये

पिरोती रही उन लम्हों को
नर्म सर्दियो में बिताये हुये

समेटती रही रात रातभर
फुल लब्जोंके बिछाये हुये

रातभर ढुंढती रही आँखे
ख्वाब कभी जो देखें हुये

© शिवाजी सांगळे 🎭
©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
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