फिर रात भर...

Started by शिवाजी सांगळे, December 08, 2016, 11:39:52 AM

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शिवाजी सांगळे

फिर रात भर...

रात की स्याही
आसमान में
लोरी सुना रही है,
आहिस्ता खेलो
बादलों..., शोर न करो...
देखो चांद सो रहा है !
जग गया कहीं, तो
मै, सो ना पाऊंगा,
रातभर...
दिलायेगा याद
बहुत से किस्से...अतित के
कई खट्टे, कुछ मिठे
बुलवाएगा मुझसे !
बातें कुछ ऐसी...
जो दबी हुयी है मन में,
गुम हो जाऊंगा, मै
उसके साथ...अतित में
बोझल होगी आँखें
भर आयेंगी...
जागते रहेंगे दोनों,
फिर रात भर...

© शिवाजी सांगळे 🎭
©शिवाजी सांगळे 🦋papillon
संपर्क: +९१ ९५४५९७६५८९

मिलिंद कुंभारे