बुलबुलें

Started by शिवाजी सांगळे, February 19, 2017, 02:05:33 PM

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शिवाजी सांगळे

बुलबुलें

जीवन के प्रती
कितना विश्वास?
चाहतों की आस
हर रोज कम होता
अहसास...
फिर भी उम्मीदोंको
नापतें है, अनगिनत
आशाओं के साथ,
एक एक पल, लम्हां
गुजरता है, बिना आहट के
कम करता है, 
उस प्राण वायु को,
जो बांधकर रखे हुये है
खुद को, अपने वलय के
सासों की डोर को,
झुलाती है, बचपन से
मृत्यु तक...
कभी कभी
बुलबुलें भी उभरते है,
पाणी में...
जीवन कि तरहां,
और बिना किसी आहट के
बुलबुला ओझल होता है,
जीती जागती आखोंसे...

© शिवाजी सांगळे 🎭
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