बुझता अलाव

Started by शिवाजी सांगळे, February 24, 2017, 09:45:45 AM

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शिवाजी सांगळे

बुझता अलाव

अलाव बुझने आया था
ओर सारी चिठ्ठीया?
वे भी जल गयी थी,
जल तो गयी थी, पर
जले, मुडें कागज, 
वैसे ही थे, और
स्याही बता रही थी
साबुत शब्दों को...
लिखें भावों को...
फिर हवा उडा़येगी खाक
होगा नष्ट, एक सफर
रिश्तों का...?
सच, होता है कहीं ऐसा?
कागज जलेंगे,
शब्द बिखरेंगे!
मन और आत्मा से,
क्या मिटेंगे वह?
लम्हें, वह पल, वो बातें?
उन्हे कैसे जलायेंगे?
बुझते हुये अलाव संग?

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