बहोत सुकून मील जाता था

Started by अमोलभाऊ शिंदे पाटील, March 23, 2017, 05:50:30 PM

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बहोत सुकून मील जाता था
उनकी बाहो मैं बस जरा सी
कमी महसुस हो रही थी
उनकी आखों में मेरे
लिये कहा नमी थी
ये मौत जरा जल्दी से
आना उनकी दुरी अब
बरदाश नही होती
मुश्किल तो अब बहोत
हो रहा हैं जिंदा रहने
केलीये अब उनकी
एक हसी दिखाई नहीं देती
ये खुदा एक रेहम कर
आखरी सांस लेने से
पहले उनसे मिलने कि एक
आखरी ख्वाईश तो पुरी कर


✍🏻(कवी.अमोलभाऊ शिंदे पाटील).मो.9637040900.अहमदनगर