==* दो टुकड़ो में पड़ी थी बेटी *==

Started by SHASHIKANT SHANDILE, May 30, 2017, 05:31:24 PM

Previous topic - Next topic

SHASHIKANT SHANDILE

(हाल ही में घटी एक घटना पर आधारित)

दो टुकड़ो में पड़ी थी बेटी
तड़प तड़पकर माँ को पुकारे
माँ मै तुझसे प्यार हु करती
जैसे हो माँ मुझे बचाले

माँ जो आई देख वो मंजर
होश तो जैसे उसने गवायें
नम आँखोंसे कोशिश माँ की
बेटी को वो गले लगाये

टुकडे वो माँ कैसे समेटे 
मदत मांगते वो गिड़गिड़ायें
लोग खड़े थे जैसे तमाशा
कोई मदत को आगे न आये

बनी नपुंसक विचारधारा
वीडियो का था एक नजारा
मानवता का नाम न लेना
मासूम को ना मिला सहारा

आधा घंटा तड़प तड़पकर
बेटी ने जो प्राण है छोड़े
देख तमाशा इस जीवन का
माँ ने अपने हात है जोड़े

देख तमाशा इस जीवन का
माँ ने अपने हात है जोड़े
---------------//**-
शशिकांत शांडिले, नागपुर
भ्रमणध्वनी - ९९७५९९५४५०
Its Just My Word's

शब्द माझे!