* ऐब *

Started by कवी-गणेश साळुंखे, September 01, 2017, 03:56:27 PM

Previous topic - Next topic

कवी-गणेश साळुंखे

*दुनिया हमें नेकदिल समझती है*
*फिरभी वो ठुकराकर चले गए*
*शायद होंगे कुछ ऐब हमारे अंदर*
*जो दुनिया को नही उन्हे नजर आ गए*
*कवी- गणेश साळुंखे*
Mob - 8668672192